अरशद मदनी ने कहा- मुसलमानों के हताशा, पिछड़ेपन और हीन भावना से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है शिक्षा

देवबंदः जमियत उलेमा हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि मुसलमानों को पिछड़ेपन, हताशा और हीन भावना से बाहर निकालने का एकमात्र रास्ता शिक्षा है. मौलाना मदनी आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए ’’मदनी-100‘‘ के नाम से एक मुफ्त कोचिंग सैंटर के उद्धघाटन के मौके पर बोल रहे थे. मौलाना मदनी ने कहा कि इस सेंटर की स्थापना का मकसद होनहार लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करना है. इसके लिए दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं पास छात्रों का चयन परीक्षा द्वारा किया जाएगा.

आर्थिक तौर पर कमजोर गैर मुस्लिम बच्चों को भी निःशुल्क कोचिंग दी जाएगी
यह ‘‘एडमीशन-कम-स्कालरशिप टेस्ट’’ होगा और जिन बच्चों का चयन होगा, उन्हें 100 प्रतिशत तक छात्रवृत्ति दी जाएगी. वर्तमान में उन्हें आई.आई.टी, जे.ई.ई और नीट जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निःशुल्क कोचिंग दी जाएगी. मौलाना मदनी ने यह भी स्पष्ट किया कि जमीअत उलमा-ए-हिंद धर्मवाद से ऊपर उठकर मानवता के आधार पर काम करती है. इसलिये यह जो सेंटर स्थापित किया जा रहा है इसमें भी इस परंपरा का ध्यान रखते हुए ऐसे गैर मुस्लिम बच्चों को भी निःशुल्क कोचिंग दी जाएगी जो आर्थिक रूप से कमजोर हों, लेकिन प्रतिभाशाली हों.

 

 

वैचारिक टकराव का मुकाबला शिक्षा से ही संभव
उन्होंने कहा कि देश में अब जिस प्रकार का धार्मिक एवं वैचारिक टकराव शुरू हुआ है इसका मुकाबला शिक्षा के अतिरिक्त अन्य हथियार से नहीं किया जा सकता, ऐसे में हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अपनी नई पीढ़ी को प्राथमिक धर्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक उच्च शिक्षा दिलवा कर इस योग्य बना दें कि वो अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा से सफलता की वो मंजिलें प्राप्त कर लें जिन तक हमारी पहुंच अति कठिन बना दी गई है.

सिविल सर्विसेज के लिए कोचिंग सेंटर स्थापित करने की है योजना 
मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि हमारे बच्चों में बुद्धि और प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, असल चीज उनका प्रयोग करके उनका मार्गदर्शन करना है, फिर यह भी है कि मुसलमान आर्थिक रूप सं कमजोर हैं, इसलिये हमारे बहुत से बुद्धिमान और प्रतिभाशाली बच्चे उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते और बीच में ही शिक्षा त्याग देते हैं. उन्होंने कहा कि इस कोचिंग सेंटर की स्थापना के पीछे मूल उद्देश्य यही है कि इसके द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन बुद्धिमान छात्रों को न केवल मुफ्त कोचिंग दी जाये बल्कि उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाए.उन्होंने कहा कि अगर यह प्रयोग सफल होता है तो आगे चल कर संगठन की इच्छा सिविल सर्विसेज के लिए कोचिंग सैंटर स्थापित करने की है.

धर्म के आधार पर कोई काम नही करती जमीयत
विदित हो कि जमीअत उलमा-ए-हिन्द 2012 से मेरिट के आधार पर चयनित होने वाले गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति दे रही है. इस वर्ष 656 छात्रों को छात्रवृत्ति दी गई है जिनमें हिंदू छात्र भी शामिल हैं और यह इस बात का प्रमाण है कि जमीअत उलमा-ए-हिंद धर्म के आधार पर कोई काम नहीं करती बल्कि मानवता के आधार पर करती है. अहम बात यह है कि इस वर्ष से छात्रवृत्ति की राशि भी 50 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ कर दी गई है, आने वाले वर्षों में इस राशि में और भी वृद्धि किए जाने की योजना है.

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