नई दिल्ली:कुरआन का महत्व और इसे अपने जीवन में उतारने पर ज़ोर देते हुए जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि हमारी नई पीढ़ी उर्दू भाषा से अनभिज्ञ होती जा रही है, इसलिये अब इस्लामी साहित्य का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया जाना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है। यह बात उन्होंने मीडीया से बातचीत करते हुए कही।
मौलाना मदनी ने कहा कि भारत से जब फ़ारसी भाषा भी समाप्त होने लगी तो उलमा ने कुरआन और इस्लामी सहित्य को उर्दू में अनुवाद करने का कर्तव्य निभाया, हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी के सुपुत्र और उस समय के अन्य बड़े उलमा ने कुरआन के अनुवाद और इस्लामी साहित्य को उर्दू भाषा में उपलब्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आगे कहा कि अब जबकि हम देख रहे हैं कि उर्दू भाषा का भी भारत में चलन कम हो रहा और हमारी नई पीढ़ी की एक बड़ी संख्या उर्दू भाषा से अनभिज्ञ हो चुकी है तो हमने ज़रूरी समझा कि इस्लामी साहित्य का हिन्दी भाषा में भी अनुवाद किया जाए ताकि आम मुसलमान इस्लाम की शिक्षा से अवगत हो जाए, यही वह मूल कारण है कि हमने कुरआन का हिन्दी में अनुवाद करने का कार्य शुरू किया।
उन्होंने स्पष्ट रूप से यह बात कही कि हमारे सामने यह एक बड़ी समस्या है कि जो बच्चे उर्दू भाषा से अनभिज्ञ हैं उन्हें किस तरह अपना धर्म सिखाया जाए, इस पर हम सबको गंभीरता से सोचने की आवश्यका है, अल्लाह का शुक्र है कि आठ वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद कुरआन का अनुवाद हिन्दी भाषा में हो गया। मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि पिछले कुछ समय से कुरआन की कुछ आयतों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की आपत्तियां भी हमारे सामने आती रही हैं, ज़ाहिर है कि ऐसा कुरआन के अर्थ को उसके संदर्भ में न समझने के कारण हो रहा है, इलिये हमने कुरआन की आयतों के सिलसिले में सही रुख अपनाया ताकि इस प्रकार की आपत्तियों का पूर्ण रूप से समाधान किया जा सके।
उन्होंने आगे कहा कि इस अनुवाद और व्याख्या का 90 प्रतिशत आधार हज़रत शैख़ुल हिंद का अनुवाद और व्याख्या है, शैख़ुल हिंद के अनुवाद की विशेषता यह है कि हर अरबी शब्द के नीचे उस का अनुवाद आगया है और यह सरल भाषा में है, लेकिन हिन्दी भाषा में यह संभव नहीं था क्योंकि हिन्दी भाषा बाएं ओर से लिखी जाती है, असलिये हर शब्द के नीचे उसका अनुवाद नहीं आसकता था, इसको देखते हुए हिन्दी में आज के समय के अनुवार वाक्य का जो क्रम होना चाहिए, हमने इस क्रम का ध्यान रखा है, उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी में अनुवाद करते समय दस प्रतिशत अनुवाद के लिए हज़रत थानवी के अनुवाद से लाभ उठाया गया है, मौलाना मदनी ने अंत में कहा कि इस अनुवाद और व्याख्या से हमारे ग़ैर मुस्लिम भाई भी फायद उठाकर कुरआन से संबंधित अपने भ्रम दूर कर सकते हैं।
स्पष्ट रहे कि आठ वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद मौलाना सैयद अरशद मदनी का किया गया क़ुरआन का हिन्दी में अनुवाद न केवल प्रकाशित हो चुका है बल्कि उन्होंने इसकी व्याख्या भी (हिन्दी में) आसान और सरल भाषा में लिखी है, ताकि थोड़ी बहुत भी हिन्दी जानने वाला कुरआन के आदेशों से पूर्ण रूप से लाभ उठा सके। इस संदर्भ में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कुरआन के अनुवाद का मूल आधार अरबी है लेकिन जब इस्लाम भारत में आया तो यहां फ़ारसी भाषा का चलन था, उस समय के विद्वानों ने अपनी आवश्यकता के अनुसार अरबी भाषा का फ़ारसी में इस्लामी साहित्य और क़ुरआन का अनुवाद किया।